Anam

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कबीर दास जी के दोहे



दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।

अर्थ:

यह मनुष्य का स्वभाव है कि जब वह दूसरों के दोष देख कर हंसता है तब उसे अपने दोष याद नहीं आते जिनका न आदि है न अंत।

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